आप अपना ज्ञान यदि लोगों को बाँटते हैं तो आपका ज्ञान वृद्धिंगत होगा, आपको आत्मिक शांति मिलेगी। स्वयं भरपेट खा कर भी आप दूसरों को भोजन नहीं देते हैं तो आप भरे पेट भी भूखे ही रहते हैं। यदि आप अपने में से आधा भोजन दूसरों को देते हैं तो वह भोजन अमृत है। इससे आपको आनंद का अनुभव होता है। आपका दृष्टिकोण यदि संकुचित होगा तो नवकारमंत्र का प्रभाव भी अल्प होगा अटूट श्रद्धा और गहरी तन्मयता से मंत्रपाठ हो। मंत्रपाठ करते समय आपका हृदय उदार हो। अन्तश्चक्षु खुल जाएँ। अरिहंतों के भाव, वाणी और गुण को आप अपने चारों ओर व्याप्त महसूस करें। ये सब आपके भीतर स्थिर हो जाने चाहिए ।
आपको सुभद्रा की कहानी मालूम होगी। सुभद्रा धर्मात्मा थी। साधु-संतों की सेवा करती थी। सत्संग करती थी। उसकी सास को ये काम अच्छे नहीं लगते थे। जब भी सुमद्रा धर्मस्थान जाने के लिए सास से अनुमति माँगती, वह किसी न किसी काम का बहाना कर उसे धर्मस्थान जाने से रोक देती। सुभद्रा इसे अपने कर्मों का दोष समझती थी, सास का नहीं। एक दिन एक मुनि सुभद्रा के घर पधारे। वह बहुत प्रसन्न हुई। उसकी आँखों से हर्ष के आँसू बहने लगे। उसने देखा कि मुनि की आँख में तिनका लगा हुआ है। इस बात का उसे कष्ट हुआ। उसने मुनि की आँख से तिनका हटा दिया। वह निर्विकार थी, उसे कुछ भी नहीं हुआ। सामने सास खड़ी थी। उसने यह घटना देखी। उसमें विकार थे. उसके क्रोध का ठिकाना नहीं रहा। घर में जो भी आते, उन सबसे वह बहू के इस कृत्य के बारे में कहती रही। उसकी नजर में यह अधर्म था। वह कहती रही कि बहू ने मुनि को भ्रष्ट कर दिया है। उसने बेटे को कहा कि बहू को घर से बाहर निकाल दे। सुभद्रा को यह जँचा नहीं। उसने सोचा कि यह संकट मुझ पर नहीं; धर्म पर है।
वह एकान्त में मौन होकर एक कमरे में बैठ गई। प्रभु से प्रार्थना करने लगी कि प्रभो! यह मुझ पर नहीं, धर्म पर संकट है। मेरा संकट दूर करो। देव प्रकट हुए, चंपानगरी के मुख्य द्वार देवमाया से बंद हो गये। लोगों ने बहुत प्रयत्न किया पर खुले नहीं। फिर आकाशवाणी हुई कि कोई सती नारी कच्चे धागे से चालनी बांध कर कुए से पानी निकाल कर चम्पा के द्वार पर जल छींडकेगी, तभी द्वार खुलेंगे, अन्यथा नहीं। नगर में घोषणा हुई। सभी नगर की बहुएँ आईं, परन्तु कोई भी यह काम करने में सफल नहीं हुई।
सुमद्रा ने नमस्कारमंत्र का स्मरण करके धागा ले कर चालनी से बाँधा और कुएं से जल निकाला और नगरी के द्वारों पर छिंटका। तीन दरवाजे खुले, एक दरवाजा नहीं खुला, उसे भी वह खोलने के लिए जल छिड़कने लगी। देवता ने सति सुभद्रा की जयजयकार करते हुए कहा- सुभद्रे। तुम सती और धर्मात्मा हो, तुम्हारी परीक्षा पूर्ण हुई। अब कोई और सती नारी होगी वह चौथा द्वार खोलेगी।
सुभद्रा सती की और धर्म की जय जयकार हुई, महामंत्र के प्रभाव से इस घोर और गहन संकट का निवारण हुआ।
पंजाब की एक घटना है। स्कूल की एक ट्रीप भाखड़ा नांगल बाँध देखने गई। एक नाव में चालीस बच्चे बैठे थे। नाव पुरानी थी। उसमें पानी चढ़ गया। बीच मँझधार में नाव अटक गई। नदी गहरी थी। बच्चों को कैसे बचाया जाय? अध्यापक चिंतित थे। उन बच्चों में से एक दस बारह साल की लडकी नीचे उतरी। दो बच्चों को कंधों पर ले कर वह तैर कर किनारे तक पहुँची। इस प्रकार अपनी जान खतरे में डाल कर दस बारह बच्चों को उसने बचा लिया। माँ को जब अपनी बेटी की इस साहसिकता का पता चला तो उसे भी आश्चर्य हुआ, क्योंकि उसे पता था कि मेरी बेटी डरपोक है। उसने लड़की से जब इस किस्से के बारे में पूछा तो उसने बताया कि जब नाव डूबने लगी और बच्चे पानी में डूबने लगे, तब मेरे मन में नवकारमंत्र का पाठ करने के भाव जागृत हुए। मैं नमस्कारमंत्र पढ़ती गई और मुझ में शक्ति आगई। इसी महामंत्र के प्रभाव से मेरे मन में यह पुण्यकार्य करने का भाव जगा, मेरे में शक्ति आ गई।
व्यक्ति या धर्म पर जब संकट आता है, तब इस मंत्र का उच्चारण करने से जरूर इसका प्रतिफल मिलता है। अदृश्यरूप से अनेक शुभ शक्तियाँ सहायता के लिए आती है। हमारे भावों के अनुकूल शुभ शक्तियाँ आकृष्ट होती हैं, हमें सहायता करती है। हमारी साधना कैसी है? हमारे कर्मसंस्कार कैसे है? हमारे चित्त की शुद्धता कितनी है? इन सब चीजों का प्रभाव हम पर जरूर पड़ता है? सचमुच में नवकार मंत्र बहुत प्रभावशाली मंत्र है। इसमे किसी एक व्यक्ति का नाम नहीं है। दुनिया के सभी अरिहंतों को नमन है। सभी सिद्धों और आचार्यों को नमन है। सब उपाध्यायों को नमन हैं। सब साधुओं को वंदन है। कितने व्यापक दृष्टिकोण से आप नमन करते हैं। नवकार मंत्र सार्वभौम मंत्र है। संपूर्ण मानव- जाति के कल्याण का मंत्र है। आप श्रद्धा, कृतज्ञता एवं अहोभावसे शुद्ध अन्तः करण से पाठ या जाप करते हुए मंत्रगत भावों को जीवन में उतारें। यही मेरी आप सबके प्रति मंगल भावना है