आहार और जीवन कैसा होना चाहिये ?

आहार और जीवन का घनिष्ट सम्बन्ध है। शरीर को बनाने के लिए, शरीर के अस्तित्व को टिकाने के लिए और क्षुधा आदि के निवारण के लिए हर प्राणी को आहार ग्रहण करने की आवश्यकता रहती है।

जैनदर्शन के अनुसार तो प्रत्येक आत्मा गर्भ में अवतरण के साथ ही सर्वप्रथम आहार ग्रहण करने की प्रवृत्ति करती है। आहार ग्रहण की प्रक्रिया में से ही आत्मा, शरीर का निर्माण करती है, तत्पश्चात् इन्द्रियों का निर्माण होता है।
गर्भस्थ-शिशु, गर्भ में रहकर ओजाहार करता है और क्रमशः अपने शरीर को विकसित करता है।जन्म के बाद भी हर प्राणी की सर्वप्रथम आवश्यकता आहार ग्रहण करने की होती है। जन्म जन्मान्तर से आत्मा में आहार ग्रहण करने के संस्कार इस प्रकार गाढ़ बने हुए हैं कि इस विषय में किसी भी प्राणी की किसी भी प्रकार के शिक्षण की आवश्यकता नहीं रहती है। जन्मप्राप्त कुत्ते के बच्चे की आँखें बन्द होते हुए भी वह आसानी से स्तनपान कर लेता है, उसके लिए उसे किसी भी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं रहती है।

मानव-देह के साथ भी आहार का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। शरीर के अस्तित्व को टिकाए रखने के लिए, शरीर के पोषण के लिए तथा शारीरिक रोगों के प्रतिकार आदि के लिए प्रत्येक मनुष्य को भोजन की आवश्यकता रहती है।

देह और भोजन का इतना अधिक निकट का सम्बन्ध होते हुए भी अधिकांश व्यक्ति आहार विज्ञान से अज्ञात ही होते है। आहार-विज्ञान की उस अज्ञानता के कारण ही अनेक व्यक्तियों को अपने जीवन में नाना प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

भोजन की अनियमितता, अव्यवस्था, असन्तुलन आदि से जीवन अनेकविध समस्याओं से घिर जाता है और मनुष्य का जीवन साक्षात् नरकागार बन जाता है। कई बार चढ़ती जवानी में ही काया जर्जरित बन जाती है, नाना प्रकार के रोगों से काया घिर जाती है। जिसके फलस्वरुप आनन्दमय जीवन के बजाय वही जीवन आतंकमय बन जाता है।

शारीरिक आरोग्य का मानसिक स्वास्थ्य के साथ भी गहरा सम्बन्ध है। सामान्यतः स्वस्थ देह में स्वस्थ मन का वास देखने को मिलता है। मानसिक स्वास्थ्य का आध्यात्मिक जीवन के साथ गहरा सम्बन्ध है। जिसका मन स्वस्थ है, चित्त प्रसन्न है, वही व्यक्ति अपने जीवन में अध्यात्म की साधना आराम से कर सकता है।

अत्यन्त भयंकर शारीरिक वेदनाओं के बीच समाधि भाव में तल्लीन रहने वाले योगी पुरुष विरले ही होते हैं। सामान्यत: हर मानव के शिरीरिक स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य का असर उसके मन पर हुए बिना नहीं रहता है।

अत:शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही अध्यात्मिक स्वास्थ्य का भी रक्षण हो सके,ऐसा मार्ग तारक तीर्थंकर परमात्माओं ने बतलाया है।

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