खेलिये ताश के पत्ते !

ताश के पत्ते भगवान ने बाँटे या भाग्य ने, बाँटे जो बाँट दिए खेलना उन्हीं पत्तों से है। पत्ते हमारे यानी जिन्दगी के रूप में अपने हाथों में आ गए हैं।

अन्य मत वाले कहते हैं- इस दुनिया का नियन्ता भगवान ही है। जैन थ्योरी कहती है- यदि भगवान ही दुनिया का काम करने लगे तो एक को सुखी, एक को दुःखी क्यों बना रखा है। यदि कहो कि भगवान कर्म के अनुसार करता है तो भगवान से बड़ा कर्म हो जाएगा। जैन मतानुसार ‘अप्पा कत्ता य विकत्ता य, सुहाण य, दुहाण य’ यानी आत्मा ही कर्ता और आत्मा ही भोक्ता है। शराब तूने पी है, तो नशा भी तेरे अन्दर से ही प्रकट होगा।

एक बार कर्मों के कम्प्यूटर में गणित भर दी जाए तो सिस्टम सारा सेट हो जाने पर सारी गणना होकर ही बाहर निकलता है। जैन धर्म कहता है नियन्ता भगवान नहीं कर्म है। पत्तों से खेलना है पर कौन से? इसमें विवेक और होशियारी की जरूरत है।

ताश के खेल में बड़ा पत्ता है इक्का। बादशाह फाइनल में फेंक रहा है तो ही इक्का दिखाओ। पहले दिखा दिया तो हार जाओगे। वैसे ही आदमी होशियार हो तो बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है।

भगवान महावीर के 2600वाँ जन्म दिवस के समय प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाँच सौ करोड़ रुपये दिए जैन समाज को। उसे पाने के लिए किन-किन लोगों ने पुरुषार्थ किया। लुधियाना वालों ने कोशिश की। पचास-साठ वर्ष की उम्र के बुजुर्ग ने मेहनत करके तीस करोड़ रुपये सरकार से लेकर धार्मिक कार्य कए।

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। सरकार कई चीजें पासकरती है, पर उसे कैसे प्राप्त करना, इसकी भी जानकारी होनी चाहिए। माइनोरिटी-अल्पमत में जैनियों को क्या सुविधा है यह पता नहीं। छात्रवृत्ति की क्या सुविधा है यह पता नहीं। समाज से लोग कर्जा ले लेते हैं और जिन्दगी भर उन्हीं लोगों में उठा-पटक करके संबंध बिगाड़ते रहते हैं। कई लोगों को पता ही नहीं कि खेती में टैक्स नहीं लगता। इसलिए जिसके पास खेती होती है उसकी कमाई होती रहती है। खेती पर किसान का कर्जा जल्दी माफ हो जाता है।

ताश के पत्ते खेलने आने चाहिए। ताश के पत्ते किसी ने भी बांटे हो चाहे भाग्य ने या भगवान ने। खेलना उन्हीं पत्तों से है। पत्नी (ताश का पत्ता) मिल गयी। पत्नी वही रहेगी, बच्चा भी वही रहेगा, पर उनके साथ तालमेल बिठाना आना चाहिए।

पति तीन दिन बाहर काम से गए और जब वापस घर लौटे तो घर पहुँचते ही टोका-टोकी शुरू कर दी कि बेडशीट के दाग ढंग से निकले नहीं, पर्दा टेढ़ा क्यूँ लगाया, जूता उलटा क्यों पड़ा है। यह नहीं किया, वो नहीं किया। इतना बोलने की अपेक्षा पाँच मिनट में खुद ही कर लो। इसे कहते हैं- ताश के पत्ते उलटे खेलना।

अगर सीधे खेलना हो तो वह पति बोलेगा ओहो, घर कितना चमक रहा है। क्या सफाई की। हर काम तुम बहुत सलीके से करती हो। इतना कहने से पत्नी और ज्यादा उत्साह से काम करेगी। अरे! दूध में शक्कर कम हो या चाय में चीनी कम हो तो खुद ही डाल लो। चिल्लाने और दूसरों को डाँटने की क्या जरूरत है। सोच अच्छी बना लो।

शांतिलाल जी हीरावत के कजन परिवार में कोई एक सदस्य ऐसा था कि वह अपनी पत्नी की हर बात में कोई ना कोई नुक्स निकालता रहता। पत्नी चाहे कितना भी बढ़िया आइटम बनाकर लाए, वह गलती अवश्य निकालता।

एक बार हीरावत जी उनके यहाँ खाना खाने गए। भाभी ने देवर से पूछा- भैया, यह आइटम कैसा बना है। उन्होंने कहा- बहुत बढ़िया है।वह भाभी खुश हो गई। अब भी कोई आइटम भाभी बातों को अपने देवर को जरूर बुलाती होरावत जो कहते थे महाराज उसके घर में कोई चीज बनेगी तो उसको खाने वाला पहला कस्टमर में हूँ। भाभी मुझे बकर बुलाकर खिलाती है।

ताश के पते को खेलना आना चाहिए। पत्नी हो चाहे बच्चे हो. उन्हें थोड़ा उत्साहित करिए। नौकर और पड़ोसियों के साथ आवहार अच्छा रखिए।

जो हो गया सो हो गया। बिगड़ गया तो उसे आप संवार लो। दूध फट गया तो छेना बना लो। हमारी जिन्दगी हमें चल्लाना है। किसी को बदलने को आशा मत रखो। यह मत सोचो कि पत्नी बदल दूंगा या घर बदल दूंगा तो में सुखी हो जाऊँगा। धन, मकान, स्वजन-परिजन आदमी को सुखी नहीं बनाते। मुखी करता है विवेक वर्ष में कभी एक-दो बार पानी को बिठाकर आपने भोजन खिला दिया, उसके कोई काम में हाथ बंटा दिया तो वह आपका हर काम उत्साह से करेगी।

गाड़ी में पेट्रोल भराने के बाद भी वह अगर खड़खड़ चलती है तो आप क्या करते हैं? सबों ऑयल डालते हैं तो यह गाड़ी बराबर ठीक ढंग से चलती है। वैसे ही आपको पत्नी, बच्चों और नौकरों से काम लेना है तो सर्वो ऑयल डालना शुरू कर दो। नौकर को आपने दो-चार हजार के फूट-ड्राईफ्रूट खिला दिए तो यह हमेशा गुणगान गाता रहेगा। अगर नौकर को आपको अपने जैसा बनाना है तो उसे अब खिलाना शुरू कर दो। गाय-भैंस खरीदते हैं तो खरीदने वाला उन्हें नमक खिलाता है ताकि वह नमक हलाली ना करें।

जिन्दगी में ऐसे अच्छे काम कर लो कि जिसका किसी को पता नहीं हो। एक बार एक बहन बकरे का पैसा गुप्त रूप से देने लगी। वह कहती है- मुझे मन्त्री जी को नहीं देना। उन्हें पता लग जाएगा कि किसने दिया। मुझे गुप्त ही देना है। पर्सनल पैसों का अनुदान करना बहुत कठिन है। एक बार नवदम्पति ने यह नियम गुप्त रूप से ले लिया कि जब तकस्थानक नहीं बनेगा, तब तक हम ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे। फिर बतावों पुण्यवानी क्यों नहीं खिलेगी। ‘गुप्त सो पुख्त’ पुख्त यानी इस भव में अच्छा रिजल्ट देगी और पुण्यवानी परभव में भी साथ चलेगी।

खुशनसीब वो नहीं, जिसका नसीब अच्छा है। खुशनसीब वो है जो अपने नसीब से खुश है। दुनिया में सबसे बड़ी चीज वो है जो अपने पास है। अपनी झोपड़ी, मकान, अगर नसीब में किराये का है तो भी मैं खुश हूँ। जो मिला है उसमें अपने आपको राजा भोज समझना। मेरी पत्नो मिस वर्ल्ड से कम नहीं। माँ के लिए अपना बेटा चाहे वो काला हो या गोरा, लूला हो या लंगड़ा हो तो भी मारवाड़ की बहनें अपने बच्चे को कहती है- मेरा राजा बेटा यानी वो राजा के बेटे से कम नहीं है।

कमाई कम है तो टेंशन नहीं। ज्यादा है तो टेंशन नहीं। क्या आपको आ गया, ऐसे खुश रहना।

एक सेठ और सेठानी थे। व्यापार अच्छा चल रहा था। सब तरह से खुश थे, पर एक ही बात पत्नी को अखरती कि मुझे आपका नाम पसंद नहीं। आप अपना नाम बदल लो। मैं कहीं भी बाहर जाती हूँ तो लोग कहते हैं कि यह उनठन पाल की पत्नी। मुझे शर्म आती है। कुएं में पानी भरने जाऊँ या बच्चों को स्कूल छोड़ने जाऊँ, मुझे लोग ठनठन पाल की पत्नी बोल कर मजाक उड़ाते हैं।

वह सेठानी चिढ़ती रहती। हमेशा ध्यान रखो कि चिढ़ोगे तो दुनिया और चिढ़ाएगी। सेठ कहने लगे- मैं क्या कर सकता हूँ लोग कहेंगे जो कहेंगे। जब सेठ नहीं माने तो सेठानी घर छोड़ कर चली गई। रास्ते में देखा – एक अर्थी जा रही है। लोग कह रहे थे- राम नाम सत्य है। उसने पूछा- कौन मर गया? कहा- अमर मर गया। सेठानी सोचने लगी- अमर नाम और मर गया। वह और आगे गई एक आदमी भीख माँग रहा था। पूछा उसने- तुम्हारा नाम क्या है? उसने कहा- धन्त्रा। वह सोचने लगी। यह क्या नाम तो धन्ना (धन वाला) है, और यह तो भीख मांग रहा है। उससे सेठानी आगे गई, एक औरत छाने बीन रही थी। उसने उसकाभी नाम पूछा। नाम लक्ष्मी बताया। सेठानी सोचने लगी नाम तो लक्ष्मी है पर भाग्य में लक्ष्मी नहीं।

तो क्या मतलब है?

अमर मरता मैं सुणया, धत्रा माँगे भीख।

लक्ष्मी छाणा बीनती जी. ठनठन पाल ही ठीक ।।

सेठानी घर पर आ गई। सेठ से कहा- आपका नाम ठनठन पाल ही ठीक है।

सेठानी को समझ आते ही जीने का रस आ गया। जम्मू-कश्मीर में पति-पत्नी की एक ऐसी जोड़ी देखी, जिसमें

पति बूढ़ा दिखता, पत्नी जवान बच्ची जैसे दिखती थी। जहाँ भी जाते, लोग उनसे पूछते। हमारे पास आए तो हमने भी पूछा।

पत्नी ने कहा- महाराज, पहले मुझे खराब लगता था। मैं पार्टी फंक्शन में साथ जाना नहीं चाहती। पर एक दिन पति ने मुझे समझाया कि फंक्शन के हीरो तो हम ही हैं। जिस फंक्शन में हम जा रहे हैं वहाँ 500 लोग हैं। वे आपस में कोई किसी को नहीं जानते, लेकिन सब तुमको और मुझको जानते हैं।

लोग हमें देखकर खुश हो रहे हैं। खुश होकर खून ही बढ़ा रहे हैं। इसलिए तुम भी सदा खुश रहो। परेशान होकर खलनायक क्यों बनना। एक अजीब जोड़ी है। इसी को आजमाओ। खेलना उन्हीं पत्तों से है, जो हमें मिले है। जीने का रस बदल गया, सोच बदली तो व्यवहार बदल गया। जीवन आनंद से भर गया।

जीवन में सुख प्राप्त करने के लिए कपड़ा, मकान, गहना यह बढ़िया नहीं चाहिए। ज्यादा पैसा आ गया तो आदमी मकान, कपड़ा, गहना, गाड़ी, सोना, घूमना सब बदल देता है। पत्नी को भी बदल देता है। फिर जीने का रस आएगा कहाँ से?

एक मिनिस्टर की पत्नी सारे दिन काँच में मुँह देखती और फोड़ती रहती। गंदा मुँह तो गंदा ही रहेगा। काँच फोड़ने से कुछ होने वालानहीं। सुख बाहर से नहीं आएगा। वह आपके व्यवहार से, सोच से आएगा। इसलिए भीतर का आचरण सुधारने की आवश्यकता है और ताश के पत्तों से अच्छे से खेलने की आवश्यकता है।

पुराने जमाने में बच्चों को स्कूल में मास्टर मारता तो माँ-बाप मास्टर का ही पक्ष लेते। बच्चे का नहीं लेते। वे बच्चे को कहते- तुमने ही कुछ गलत किया होगा, तभी मास्टर जी कह रहे हैं। और आज बच्च को स्कूल में मास्टर डाँट भी दे तो माँ-बाप तुरंत उपालंभ देने स्कूल पहुँच जाते हैं।

पहले धैर्य था पर आज नहीं है।

आज सारे रिश्ते बिखर गए हैं। माँ-बाप से बच्चे अलग हो ग हैं। आज बिखराव इतना ज्यादा कि सबके पर्सनल एकाउंट अलग-अल हैं। जिन्दगी के ताश के पत्ते खेलना नहीं आ रहा है, इसीलिए सामंजस बिगड़ रहा है। घर, परिवार, समाज आदि जिन्दगी के हर क्षेत्र में हर पा आनंद लेने के लिए जिन्दगी के व्यवहार को अच्छा बनाइये, जिससे ता के पत्तों के खेल में जीत की प्राप्ति हो।

युगद्रष्टा आचार्य प्रवर श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा.

प्रस्तुति – साध्वीरत्ना आस्था श्री जी म.सा.

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