चलते-चलते थक चुका एक राहगीर, विश्रांति हेतु स्थान को खोज करने लगा। तब एक महिला ने अपने मकान के प्रखंड में उसे रहने के लिए स्थान दे दिया। रात भर वह शांति से सोया।
सुबह उठकर उस बुजुर्ग राहगीर ने पेट की भूख शांत करने के लिए खिचड़ी बनाने का विचार किया। आसपास पड़ी सूखी लकड़ियाँ एकत्रित कर चार ईंटों का चूल्हा बनाया और पकाने के लिए तपेली मकान मालकिन से ले ली।
खिचड़ी पकने में समय था, इसी बीच उस बुजुर्ग राहगीर ने गृह स्वामिनी से कहा- एक विचार आ रहा है कि आपकी भैंस तो मोटी ताजी है और कभी वह मर गई तो बाहर कैसे निकालोगी, क्योंकि आपका दरवाजा तो छोटा है।
महिला को यह सुन कर बुरा लगा, पर वह इस वाचाल नादान बुजुर्ग के मुंह लगना नहीं चाहती थी। इसलिए चुप रहना ही उचित समझा। उसने सोचा कि कुछ देर में तो जाने ही वाला है।
इधर खिचड़ी आधी पक चुकी थी। इसी बीच किसी काम से महिला उस प्रखंड में आई तो उसे देखकर वह बुड्ढा फिर बोला- तेरे हाथ में हाथी दाँत का चूड़ा तो बहुत सुंदर एवं मूल्यवान है। लेकिन एक विचार आ रहा है कि कभी अगर तुम मर गई या विधवा हो गई तो इसे निकाला कैसे जाएगा? तोड़ना पड़ा तो भारी नुकसान होगा।
इस बार उस महिला से रहा नहीं गया। वह क्रोधित हो उठी। खिचड़ी की तपेली उठाई, सारी खिचड़ी बुड्ढे के गमछे में डाली, चूल्हे की आग बुझाई और उस बुड्ढे को फटकार लगाकर बाहर निकाल दिया।
तब उस बुड्ढे को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने माफी माँगी और जाने लगा। गमछे में पानी झरता देख रास्ते में लोगों ने पूछा- यह क्या हो रहा है।
बुड्ढा बोला- यह मेरी फिसली जबान का रस झर रहा है। शास्त्र में इसीलिए कहा है-
अपुट्ठिओ न भासिज्जा।
बिना पूछे समझदार व्यक्ति को नहीं बोलना चाहिए।
‘भासमाणास्स अंतरा।’
दो व्यक्तियों के बातचीत के बीच नहीं बोलना चाहिए। अपनी पंडिताई दिखाने के लिए भी नहीं बोलना। किसी के कार्य में अनुचित हस्तक्षेप भी उचित नहीं है।
वह बुजुर्ग अगर एक ढंग से देखा जाए तो बुजुर्ग हुआ ही नहीं, उम्र भले बड़ी हो गई। रहा बचपना ही।
विवज्ञ्जणा बाल जणस्स दूरा।
ऐसे अज्ञानियों से दूर रहना ही श्रेयस्कर है।