एक व्यक्ति के पास एक दुधारू गाय थी। वह प्रतिदिन तीन किलो दूध देती थी। उसकी लड़की की शादी के दिन नजदीक आ गये। उसने सोचा ‘गाय प्रतिदिन तीन किलो दूध देती है। यानी एक महीने में नब्बे किलो दूध देती है। एक महीने बाद शादी है। नब्बे किलो दूध बारातियों के लिए पर्याप्त होगा। अच्छा होगा, मैं रोज-रोज दूध नहीं निकालूँ और एक महीने बाद एक साथ नब्बे किलो दूध निकाल लूँगा।’ यह सोचकर उसने गाय को दुहना बन्द कर दिया।
तीस दिन बीते और इकतीसवें दिन बारात आ गई। वह बड़ा बर्तन लेकर गाय को दुहने बैठा। उसने देखा कि गाय से एक बूंद भी दूध नहीं मिल रहा है। काफी कोशिश के बाद भी दूध नहीं निकला। वस्तुतः जब शक्ति को दुहना बंद कर दिया जाता है तो प्राप्त शक्ति भी क्षीण हो जाती है। शक्तिवर्धन का महत्त्वपूर्ण सूत्र है शक्ति का निरंतर उपयोग करते रहना। कुछ लोग सोचते हैं कि शक्ति को काम में लेने पर वह क्षीण हो जाती है। यह चिन्तन समीचीन नहीं है। शक्ति का नियम है कि उसको काम में लेंगे तो वह काम देगी और बढ़ेगी। यदि उसका उपयोग बंद कर दिया जाए तो वह क्षीण हो जाएगी।
हमारे मस्तिष्क में चिन्तन, मनन, विश्लेषण आदि की शक्तियाँ हैं। यदि इनक उपयोग न किया जाए तो वे शक्तियाँ टूट जाएँगी। जो आदमी दो-चार वर्ष तक मस्तिष की शक्ति का उपयोग बंद कर देता है, वह कितना ही बुद्धिमान क्यों न हो, निग भट्टारक बनकर ही रह जाएगा। यदि शरीर के अवयवों से काम न लें तो वे अवयव निकम्मे हो जाते हैं। उनकी शक्ति टूट जाती है।