पुराने जमाने की बात है। एक सेठ का बेटा बेहद आलसी और कमजोर था। उसकी इस प्रवृत्ति से सेठ परेशान रहता था। एक दिन उसके एक मित्र ने उसे एक संत के बारे में बताया। उसका कहना था कि संत के पास अद्भुत शक्ति है। उनके संसर्ग में आते ही व्यक्ति सद्मार्ग पर चलने लगता है। सेठ ने सोचा कि शायद संत के प्रभाव से उसका बेटा भी सुधर जाए। वह अपने बेटे को लेकर संत के पास पहुँचा। संत ने सेठ को बेटे की उपस्थिति में पाँच प्रश्न पूछने को कहा।
सेठ ने पहला सवाल किया- “महाराज! यदि कभी ऐसी स्थिति आ जाए कि मुझे ईश्वर से कुछ मांगना पड़े तो मैं क्या मांगू?”
संत बोले – “तुम परमार्थ का धन मांगना।”
सेठ ने पूछा- “कुछ और मांगना पड़े तो….!”
संत ने कहा – “तब तुम पसीने की कमाई मांगना।”
सेठ ने वही सवाल दोहराया तो संत ने जवाब दिया –“फिर उदारता मांगना।” –
सेठ ने फिर कहा – “यदि इसके बाद भी कुछ और मांगना पड़े तो?”
संत बोले – “फिर तुम ईश्वर से कहना कि विचलित न होऊँ और हमेशा उसी पर चलूँ। यदि इसके बाद भी कुछ मांगना पड़े तो तुम सद्व्यवहार मांगना। इन पाँच गुणों के होने के बाद तुम्हे ईश्वर से कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि जिस व्यक्ति के पास ये पाँचों गुण हैं, उसके पास हर चीज स्वतः आ आएगी और जो इन गुणों से रहित आलसी व कमजोर है, वह इस पृथ्वी पर बोझ के अतिरिक्त कुछ और नहीं है। ऐसे लोगों को अनेक वरदान भी नहीं सुधार सकते।”
सेठ का बेटा यह सब सुन रहा था। वह समझ गया कि यह सब उसे ही सुनाने के लिए कहा जा रहा है। उसी दिन से वह सुधर गया। उसने ठान लिया कि मनुष्य जीवन कुछ कर दिखाने के लिए होता है व्यर्थ गंवाने के लिए नहीं।