संस्कारों का पर्दा खोलनेवाली कहानी| Motivational Story

बरसात चल रही थी। उस भयंकर वर्षा में एक लड़की मस्ती करती हुई हाथ को पानी की बूंदों से भिगोते हुई अपनी मम्मी रोमा से कहने लगी- मम्मी, पेड़-पौधे, हरियाली का मजा लेने के लिए लांग ड्राइव पर चलो। मौसम बहुत बढ़िया है। घर पर बैठ कर क्या करेंगे। बाहर घूमने जाएँगे तो जंगल की पहाड़ों की बाग-बगीचों की सुषमा देखने को मिलेगी। रीमा ने कहा- अपने पापा को बोलो। उस बच्ची ने पापा से कहा- पापा बोलो ना लांग ड्राइव पर चलते हैं। उसके पापा भी तैयार हो गए।

रीमा ने नौकरानी को भी कहा तुम भी हमारे साथ चलो। चम्पा बोली- मालकिन मुझे तो जल्दी से काम निपटा कर घर जाना है। मेरी झोपड़ी की छत से बारिश में पानी टपकता रहता है। मेरी झोपड़ी पानी से भर गई होगी। मुझे घर जाकर वो पानी बाहर निकालना है। राशन की भी व्यवस्था नहीं है वो भी करनी है। मुझे तो इस लांग ड्राइव पर चलना पड़ता है।

रीमा ने पति को देखा, पति ने रीमा को देखा। दोनों ने आपस में निर्णय लिया और चम्पा को अपने साथ गाड़ी में बिठाया और गाड़ी को लेकर झोपड़ी के पास गए। गाड़ी से चम्पा के साथ नीचे उतरे। सबसे पहले झोपड़ी का पानी बाहर निकलवाया। बाजार से बरसाती लाकर झोपड़ी को ठीक किया ताकि पानी घर में ना आए। राशन पानी की जहाँ कमी थी, वह सारी व्यवस्था पूरी की। रीमा ने किचन में जाकर अल्पाहार बनाया और सबसे पहले चम्पा के पति व उसके बच्चों को खिलाया। फिर तीनों वापस अपने घर पर आ गए। यह है लांग ड्राइविंग। अगर आपको लांग ड्राइव का मजा लेना है तो क्या आपको ऐसे काम करने की इच्छा है? नहीं? तो फिर गाड़ी लेकर लाग ड्राइव पर निकल भी गए और पुण्यवानी सही नहीं है तो गाड़ी या तो कीचड़ में फसेगी, खराब हो जाएगी, एक्सीडेंट हो जाएगा।

अच्छे कामों की अगर लांग ड्राइविंग कर ली तो आपका भविष्य सुरक्षित हो जाएगा। जैसे गाड़ी का एक्सीडेंट होते ही उसमें लगे बैलून आदमी की जान बचा लेते हैं। जैसे सीट बेल्ट लगाने से उसकी सुरक्षा हो जाती है। वैसे ही अच्छे और नेक काम से आपके जिन्दगी भर के लिए सुरक्षा बेस्ट लग गए। आप सुरक्षित हो गए। आप खुद भी औएँ और दूसरों को भी जीने दें। पहले व्रत में एक अतिचार आता है- ‘अइभारे।’ आपने नौकर-

नौकरानी पर काम का ज्यादा बोझ डाल दिया तो उसमें भी दोष लगता है। हमें हमारे कामों की चिंता है। हमें उनकी चिंता नहीं है। जो आपके अधीनस्थ है. जो आपके लिए काम कर रहा है उसे कौटुम्बिक सदस्य मानें। उसका सहयोग करें क्योंकि ‘जैसा खाए अन्न, वैसा होवे मन।’

इसलिए अपने कौटुम्बिक सदस्य का मन न बिगड़ने दें। पुराने जमाने में पड़ोसियों को अन्न खिलाने का रिवाज था. नौकरों के प्रति आदर भाव था। और वे ही आपके घर की, परिवार की सुरक्षा का ध्यान भी पूरा रखते थे। इसलिए वे पड़ोसी ही आपके वॉचमैन, सिक्योरिटी मेन का काम कर देते थे. किन्तु आज के जमाने में खिलाया नहीं जाता। अच्छी मिठाई किसी को दे नहीं सकते। जब वह बदबू मारने लगती है या खराब होने लगती है तब वे किसी को खाने के लिए देते हैं। ध्यान रखना सड़े हुए बीज बोओगे तो फसल सड़ी हुई ही होगी। आपसे मिठाई खाई नही जा रही है तो उसको खराब होने से पहले ही किसी को दे देना बुद्धिमानी है।

किसी पर अतिभार भी नहीं डालना, ना ही किसी के साथ संबंध का विच्छेद करना। कौटुम्बिक सदस्य, जो आपके अधीनस्थ काम कर रहे हैं, उनके आधार बन जाइए। आधार बनते ही उन्हें अतिभार लगेगा ही नहीं, क्योंकि आपने उसके बच्चों की फीस भरने में सहयोग कर दिया, उनकी दवाई का इंतजाम कर दिया। हम दूसरों का सहयोग करें। हमें ऐसी लांग ड्राइव पर जाना है। शास्त्रीय परिभाषा, मीमांसा अलग ढंग से होती है। लांग ड्राइव यानी जीवन जीना सही ढंग से आना चाहिए। परिवार की सोच सही चलनी चाहिए।

एक बार स्कूल में बच्चों को मैडम ने कहा- एक लेख लिखो कि तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो। सब बच्चों ने लिखना शुरू किया। थोड़ी देर बाद सबने अपने-अपने कागज मैडम को दे दिए। मैडम ने उनको पढ़ना शुरू कर दिया। एक छोटी बच्ची ने विचित्र लेख लिखा कि मैं बड़े होकर पैसा कमाना चाहती हूँ, फिर ‘बस’ खरीदना चाहती हूँ।
मैडम सोचने लगी- पहली बात तो समझ में आ गई. दूसरी बात समझ नहीं आई कि वह छोटी बच्ची ‘बस’ क्यों खरीदना चाहती है। मैडम ने बच्ची को बुलाकर पूछा तो उसने जोरदार जवाब दिया- मैडम जी, मेरे घर में छह सदस्य है। दादा-दादी, मम्मी-पापा, भाई और मैं। हमारे घर में एक कार है। उसमें ड्राइवर हो तो चार सदस्य बैठ सकते हैं और पाप ड्राइविंग सीट पर बैठे तो पाँच जने बैठ सकते हैं। मुझे यह अच्छा नहीं लगता दादा-दादी दोनों में से एक को छोड़ना। जब भी हम घूमने जाते हैं तो हम चार जने ही जाते हैं। वे बोलते कुछ नहीं, पर उनका चेहरा, उनकी आँखें बोलती हैं और मेरे दिमाग में उनका चेहरा हर समय घूमता रहता है।

मैं बड़ी होकर पैसा कमाऊँगी और बस खरीदूँगी। छोटे बच्चे के दिमाग में यह बात आ सकती है। इसलिए बच्चों को अच्छे संस्कार देना बहुत जरूरी है। बड़ों का सम्मान होना चाहिए। यह अच्छे बीज उनके दिमाग में बोने से ही माता-पिता का भविष्य सुरक्षित रह सकता है। नहीं तो आजकल बच्चे तो पहले ही माँ-बाप को अलग करने के लिए तैयार बैठे हैं। वे बच्चे तो कहेंगे कि टू-व्हीलर ले लेना। फोर व्हीलर लेना ही नहीं।

सब अपने-अपने स्वार्थ में जी रहे हैं। अगर जिन्दगी को लॉन्ग ड्राइव पर चलाना है तो सामायिक करिए, संतों की सन्त्रिधि में जाइए। भाग्य खोलने के लिए पता नहीं महाराज कौन सी चाबी लगा देवें, संस्कार भीतर में जितने अच्छे जम जाएँगे उतनी अच्छी लांग ड्राइव होगी।

एक गुरु जी का परलोक में जाने का समय नजदीक आ गया। उन्होंने शिष्यों को कहा- मैं चार रत्न देना चाहता हूँ। रत्नों के आकर्षण से सबके कान खड़े हो गए। गुरु जी ने कहा- मैं सब को यह रत्न बराबर दूँगा। पहला रत्न- तुम्हारे पर कोई गुस्सा करे, तुम्हारा अपमान करे तो उसको जल्दी से जल्दी भूल जाना। लम्बे समय तक उसको दिमाग में मत रखना। अप्रीति मत रखना।

नीतिकार भी कहते हैं- जिसने आपके पथ पर काँटे बिछाए, आप उसकी राह में कांटे मत बिछाओ। क्योंकि दुनिया में काँटे ही काँटे बिछ जाएँगे। कहीं निष्कंटक जगह ही नहीं रहेगी। अपने मन से काँटे हटा लिए तो ही भगवान महावीर को हमने समझा है। भगवान ने तो जहर फैलाने वाले चण्डकौशिक का भी उद्धार कर दिया और हमें जरा सी किसी ने आँख दिखाईतो हम आँख फोड़ने तैयार बैठे है।

दूसरा रत्न गुरु जी ने शिष्यों को दिया कि अगर तूने किसी का अच्छा किया तो उसे भूल जाना। व्यापार में मोल तोल करके काम करते है। लिखकर रखते है। यह व्यावहारिक जिन्दगी को निभाने के लिए करना पड़ता है। यह अलग बात है। लेकिन अगर आपने अच्छा काम किया है तो उसे मृत जाइए। अच्छे काम का कहीं ना कहीं फल अवश्य मिलता है।

तीसरा रत्न शिक्षा रूप में देते हुए गुरु जी ने कहा- परमात्मा की पुरुषार्थ पर हमेशा भरोसा रखना। लोग भरोसा करते हैं अपने बेटे-बेटियों का सास कहती है- बहू आएगी तो आराम करेंगे। वालकेश्वर में एक महिला देखो। वह इतनी मोटी थी कि उसे डबल बेड पर सोना पड़ता। एक बार वह घट्टी चला रही थी। उससे घट्टी चलाने का कारण पूछा तो वह बोली- डॉ. कहते है- हाथ बहुत मोटे हो रहे हैं। घट्टी चलाओ तो ठीक हो जाएगा। एक बार देखा वह साइकिल चला रही है। उसने कहा- मेरे पैर बहुत मोटे हैं डॉक्टर ने साइकिल चलाने को कहा है।

जिन्दगी को लांग ड्राइव पर ले जाना है तो पुरुषार्थ करते रहिए। जिन्दगी को लांग ड्राइव पर ले जाना है तो बहू को भी प्यार दीजिए। एक लड़की शादी के बाद पीहर आई। वहाँ एक बार डाइनिंग टेबल पर बहू खान परोस रही थी। उस लड़की की माँ बड़बड़ कर रही थी। पता नहीं कैसा खाना बनाती है। चाय देखो तो मीठी बना दी। खाने में कुछ स्वाद नहीं। वह बोले जा रही थी। बोलते-बोलते पति की तरफ इशारा करते हुए कहा- आप कुछ भी बोलते नहीं। अकेली मैं ही खारी बनती जा रही हूँ।

वह आदमी मन ही मन सोचने लगा- तीस वर्ष से तुझे झेल रहा हूँ। कभी आज तक कोई शिकायत की ही नहीं तो बहू को क्या बोलूँ? कुछ बोल दिया तो घर में महाभारत छिड़ जाएगी। बेटी ने यह बात सुनी। वह कहने लगी- मम्मी! लगता है आपके खाने का सिस्टम बदल गया है। खाना भाभी ने नहीं, मैंने बनाया है। आप कैसा खाते हो, क्या खाते हो, यह तो मुझे पता ही है। भाभी को धन्यवाद दो। वह यह भी नहीं बोल रही है कि मैंने नहीं बनाया और आपकी बात को समभाव से सहन कर रही है।

मम्मी, जब मैं ससुराल में पहली बार खाना बनाने किचन में गई तोपीछे से ननद आई. कहने लगी- भाभी, आपकी तो मेहदी भी नहीं सूखी और आप रसोईघर में खाना बनाने आ गई। अभी तो आप घूमो फिरो। सबसे बातचीत करो। आप हमारे आदरणीय हो। काम तो जिन्दगी भर करना ही है। वह मुझे काम करने नहीं देती। मैंने भी अपनी भाभी को आदर देते हुए कहा- आप जाओ, मुझे खाना बनाने दो। यह खाना भाभी ने नहीं मैंने बनाया है। खाना अच्छा ही बना हुआ है। वह सास जो इतनी देर से भड़भड़ कर रही थी। चुप होकर आराम से खाना खाने लग गई। आत्मा के प्रतिकूल आचरण, जैसा आप अपने लिए नहीं चाहते, दूसरों के लिए भी वैसा आचरण नहीं करना चाहिए। वह बेटी कहती है- मेरा ससुराल बहुत अच्छा है। सब मुझे अपने हाथों में रखते हैं। फिर मैं भी अपनी भाभी के साथ ऐसा अच्छा व्यवहार क्यों न रखूँ। कभी भी बहू के पीहर की चीजों से, उसकी भावनाओं से खिलवाड़ मत करो। अगर छेड़ाछेड़ी की तो लांग ड्राइव चलेगी नहीं।

चौथा शिक्षा रूपी रत्न गुरुजी ने शिष्यों को दिया कि जो जन्मा है वह मरेगा ही। उसे कोई बचा नहीं सकता। इसलिए वैराग्य भाव हमेशा मन में रहना चाहिए। जो धन कमा रहा हूँ, वह साथ जाएगा नहीं। चंद चाँदी के टुकड़ों के पीछे क्यूँ संसार बढ़ाना। इसलिए जब जाना ही है तो आज ही तैयार रहो।

आज कोई भी रिश्ता आता है तो लड़के का बाप देखता है कि लड़की के घर में कितना धन है। लड़का देखता है कि लड़को रूपवान है या नहीं। कितना कुछ भी देखो, अगर लड़की का खानदान अच्छा नहीं तो रगड़े- झगड़े ही होंगे।

एक बेगम की दोस्ती पिंजारिन से थी। संयोग से दोनों के बच्चे साथ-साथ हुए। पिंजारिन बेगम हरमा के पास अपना बेटा लेकर आई। देखा बेगम ने मेरा बेटा इतना काला, पिंजारिन का छोरा गोरा-सुंदर है।

रूप-रंग कोई नस्ली नहीं होता। आप देखिए गाँव के जाटों के छोरे-छोरी सुंदर, सेठानियों के सुंदर नहीं होते। जाटनी छांछ-दही रोटी खाती है और सेठानी गर्भवती रही तो वनस्पति, फूट ज्यादा खाती है और वनस्पति का रंग काला होता है। बेगम हरमा ने पिंजारिन को समझा-बुझाकर बच्चे को उलटा-पुलटा कर दिया। समय निकला। थोड़े समय बाद बांदशाह कहीं जा रहा था। उसे एक बच्चे ने रोका कहा- आप यहीं रुक जाइए। आगे डूंगर पर राजाका सिहासन लगा हुआ है। राजा बैठे हैं। दरबार लगा है। वादी, प्रतिवादी है, न्यायालय, सब चल रहा है। बादशाह ने देखा उसे। इतना दमखम। पूछा- तु किसका बेटा है? उसने कहा- पिंजारिन का। बात बादशाह के गले नहीं उतरी।

बादशाह वापस महल में आया। देखा- राजकुमार एक तरफ बैठा हुआ। रस्सी को खूंटी से बांध कर ऊपर-नीचे कर रहा है। वह देखता रह गया- यह क्या है। बादशाह के मन में आया, यह औलाद मुझे मेरी नहीं लगती। पहुँचा बेगम हरमा के पास और बोला- सच बता, यह किसका बेटा है?

चोर के पैर कच्चे होते हैं। बेगम हरमा डर गई। उसने सच बता दिया कि अपना बेटा सुंदर रूप-रंग वाला नहीं था। इसलिए मैंने पिंजारिन के बेटे से अदला-बदली कर ली, क्योंकि उसका बेटा गोरा सुंदर था।

बादशाह समझ गया वह बच्चा मेरा है, तभी गाँव के सारे बच्चों पर उसका आधिपत्य है। बादशाह अपने बेटे को महल में लेकर आ गया और पिंजारिन को उसका बेटा वापस लौटाया।

इसलिए खानदानी संस्कारों का जबर्दस्त प्रभाव पड़ता है। जिन्दगी की लांग ड्राइविंग करनी है तो इन छोटी-छोटी बातों को अमल में लाना पड़ेगा।

युगद्रष्टा आचार्य प्रवर श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा.
प्रस्तुति- साध्वीरत्ना आस्था श्री जी म.सा.

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