साध्वीरत्ना आस्था श्रीजी म.सा.
साध्वीरत्ना आस्था श्रीजी म.सा.
खामगाँव में पर्युषण पर्व का प्रसंग।
सभी में छाया रहता है धर्म का उत्साह उमंग।
एक नन्हीं बच्ची लब्धि श्रीश्रीमाल भी अपनी मम्मी से जिद्द करने लगी- मुझे भी स्थानक जाना है। जब से स्कूल से आई एक ही जिद्द, महाराज सा. के जाना है। मम्मी के पीछे लग गई।
भावना जी ने कहा- बेटा। अभी घड़ी में एक बजे है। तुम अभी पढ़ाई कर लो। एक घंटे बाद मेरे साथ चलना। लब्धि खुश हो गई।
लगभग दो बजे ढाई वर्ष की वह बच्ची मम्मी के साथ स्थानक पहुँची, वहाँ णमोत्थुणं सर्कल जाप हो रहा था। भावना जी ने लब्धि को समझाना शुरू किया। तुम यहाँ पर बिल्कुल बदमाशी मत करना। आवाज मत करना। चुपचाप मेरे पास बैठ जाना। लब्धि ने अपनी गर्दन हिला दी। भावना जी ने उसे फिर डराया। अगर इधर-उधर गई तो मैं तुमको यहाँ वापस नहीं लाऊँगी। लब्धि ने कहा- ठीक है।
वह चुपचाप शांत मुद्रा से सभी को देखने लगी। सभी एक गोल सर्कल में बैठ कर हाथ जोड़ कर णमोत्थुणं का उच्चारण करने लगे। लब्धि ने भी शब्दों को पकड़ना शुरू किया। बुद्धि की निर्मलता और
भीतर की सरलता ने केवल शब्दों का ही उच्चारण नहीं किया, वह तो उसे भीतर धारण करती चली गई।
लब्धि के अनकॉशियस माइंड में सब फीड होता चला गया। एक-एक शब्द लब्धि के मन में छपता गया और उसका मन पंकज खिलता गया। जाप की समाप्ति के बाद सबकी नजर लब्धि पर पड़ी और सब कहने लगे- यह कितनी शांत है। आधे घंटे से एक ही जगह बैठी है और हमारे साथ जाप भी कर रही है। कितनी धैर्यता है. चंचलता बिल्कुल नहीं है। एक दो बहने उसके पास गई. उसे पुचकारा, शाबाशी दी और पूछा- तुम्हें नवकार मंत्र आता है।
उसने धीरे से गर्दन हिलाई। लब्धि की मम्मी ने कहा- सुनाओ। तो उसने इतनी शुद्धि से सुनाया कि सभी उससे प्रभावित हो गए और कहने लगे- लब्धि ! तुम मम्मी के साथ आना।
लब्धि सिर्फ और सिर्फ एक दिन गई पर लब्धि लब्धि नहीं रही। वह श्रीश्रीमाल परिवार की उपलब्धि बन गई। स्थानक से घर जाने के बाद नह श्रीमाताई-बहनों के साथ खेलने गई। खेलते-खेलते वह णमोत्पुर्ण चोया लगी। पढ़ते-पढ़ते भी उसे जब याद आ जाता वह णमोत्थुणं, अरिहंताय भगवंताण आदि बोलती रहती।
आकि पापा निलेश जी श्रीश्रीमाल किसी काम से कमरे में गए। ज णमोत्थुणं बोल रही थी। उन्होंने ध्यान से सुना, तब पता लगा कि यह नवकार मंत्र नहीं णमोत्थुणं बोल रही है। वे खड़े-खड़े विचार में पड़ गए कि इस तिक्खुतो भी हमने नहीं सिखाया और इसे णमोत्थूणं का पाठ कैसे याद हो गया? इतने में ही लब्धि की मम्मी किसी काम से कमरे में आई। निलेश जो बोले- सुनो भावना, लब्धि को णमोत्थुणं आता है। भावना जी ने हँसते हुए कहा- णमोत्थुण नहीं नवकार मंत्र आता है। इसने कल ही स्थानक में सुनाया था। हर रविवार को अब इसे धार्मिक पाठशाला भेजेंगे। तब सामायिक के पूरे पाठ याद हो जाएँगे।
निलेश जी कहने लगे अभी छोटी है थोड़ी बड़ी हो जाए तो भेजना। अभी इसे पढ़ना तो आता ही नहीं है, बोल-बोलकर सिखाना पड़ेगा।
वे दोनों आपस में बातें कर ही रहे थे। लब्धि अपनी मस्ती में हो णमोत्थुणं उच्चारण करने लगी। एक-एक शब्द स्पष्टता के साथ, तन्मयता के साथ। भावना जी आश्चर्य चकित ! इसे कैसे याद हो गया हाथोंहाथ। कहा- अरे वाह लब्धि ! तुम्हें तो पूरा णमोत्थुणं याद हो गया।
ओहो! कल स्थानक में जाप किया था। बार-बार पाठ के उच्चारण से लगता है इसको याद हो गया है। आप सही कह रहे थे कि इसको णमोत्थुण आता है। घर के सारे लोग लब्धि से सुनने लगे और उसको शाबाशी देने लगे। लब्धि ने स्थानक में भी सब के सामने सुनाया।
यह है बच्चे की नैसर्गिक प्रतिभा।
जिसने बढ़ाई पूरे संघ की गरिमा ।।
इसलिए-
‘अगर चाहिए बच्चे संस्कारवान तो भेजिए उन्हें धर्मस्थान । ताकि प्रतिभावान बनने के साथ, बन सकें वे चारित्रवान।।’