आचार्य श्री यशोविजयसूरि जी
स्वरूपवान राजकुमारी….. अनेक गुणों से शोभायमान… एकमात्र क्रोध के कारण पूरे राज्य में अप्रिय बन गई थी। छोटी-सी बातों में भी बेहद गुस्सा…. बार-बार आग-बबूला होना… अंड-बंड बकना… घमंड में सिर ऊँचा रखना। पुण्य पुरजोश में था अतः उसके मुँह पर कौन बोल सकता था? लेकिन अंदर से तो सब के नाकों दम आ चुका था।
तुच्छ कारणों को लेकर सिर सातवें आसमान को छू जाता। अनाप-शनाप बोलने लगती। उसकी तेज और तीखी जबान कइयों के कलेजे पर मानो छुरी चला देती। गुस्से में उसका दीदारा ही बदल जाता। सुहाना चेहरा डरावना बन जाता…. त्यौरियाँ चढ़ जाती…. आँखों से मानो अंगारे निकलते… नाक फूल जाता। मानो वह एक डाइन सी लगती। तथापि पुण्य के उदय में मस्त होने से वह कुछ समझ नहीं सकती थी।आग-बबूला होने में वह कितनी हैबतनाक लगती थी, उसका उसे अंदाजान था। वह तो अपने खयाल में मस्त थी। रूपगर्विता थी।
एक बार अपना चित्र बनवाने के लिए उसने चित्रकार को बुलवाया। चित्रकार राजकुमारी की नब्ज अच्छी तरह पहचानता था। छोटी-सी भूल हुई तो राजकुमारी चमड़ी उधेड़ के रख देगी, यह बात निश्चित थी। वैसे तो उसे अपनी चित्रकला पर पूरा भरोसा था। इस बहाने राजकुमारी का कैफ उतारने की चित्रकार ने ठान ली। आमंत्रण स्वीकार लिया। रोज आता और व्यवस्थित तैयार होकर बैठी हुई राजकुमारी का चित्र बनाने का कार्य शुरू किया। अलग-अलग पोज में अनेक चित्र राजकुमारी ने तैयार करवाये। साथ-साथ चित्रकार एक दूसरा भी चित्र बना रहा था।
आखिर चित्र बनाने का कार्य पूरा हुआ। दूसरे दिन सभी चित्रों को लेकर चित्रकार उपस्थित हुआ। राजकुमारी तो अधीर बन कर बैठीथी। चित्रकार ने आते ही दो हाथ जोड़ कर विनती की ‘राजकुमारी की। चित्र तो तैयार हैं। उसमें मैंने खास अपनी ओर से आपका एक चित्र किया है। यदि आप मुझे अभयदान दें. तो वह चित्र आपको बताऊँ अति उत्सुकता विलंब सहन न कर सकी। तुरंत ही अभय वचन दे दिया। चित्रकार ने चित्र निकाला। उस पर कपड़ा बँका हुआ था। देरा जिकमारी जी। दिनभर आप अधिकतर समय जिस पोज में रहती है. जह पोज इस चित्र में बताया है। मेरी भूल हो तो क्षमा करें।’ – इतना कह कर उसने चित्र पर से परदा हटा दिया।
नज़र पड़ी कि राजकुमारी डर गई, आँखें फटी सी फटी रह गई। चित्र में एक युवती थी.. भयंकर बिखरे हुए बाल… लाल-पीला मुँह… अंगारे बरसती आँखें… किसी को काट खाने को दौड़ती हो वैसा विकृत चेहरा… मुँह और नाक से मानो तूफानी हवा निकल रही थी। पूरी तरह से एक राक्षसी का आलेखन किया था। लेकिन मुँह की रेखाओं से तो स्प्ष्ट राजकुमारी का ही चित्र दिखता था। वह डर गई। ‘क्या मैं ऐसी? इतनी बदसूरत?’ कलेजे में हजारों बरछियाँ मानो एक साथ धंस गई हो, वैसी घुटन महसूस करने लगी।
लेकिन उसके जीवन की धन्य घड़ी आ चुकी थी। घमंड के साथ क्रोध भी चकनाचूर हो गया।
वह समझ गई कि ‘यह तस्वीर मेरे गुस्से के समय की है। यदि मैंने अपना गुस्से का स्वभाव नहीं बदला तो हमेशा के लिए मेरी ऐसी तस्वीर बन जाएगी। मुझे मेरा स्वभाव बदलना ही पड़ेगा।’
और तब से राजकुमारी का गुस्सा दुम दबा कर भाग गया। चित्रकार का परिश्रम सफल हुआ।
जिस परिबल ने राजकुमारी का क्रोध दूर करने में सहायता की. वही परिबल आप भी क्रोध दूर करने में अपना लो। आपका क्रोध भी खौफनाक होता है। क्रोध आते ही आपका चेहरा दर्पण में देख लो ! आप भी चौकन्ने रह जाओगे। प्रस्तुत ‘मिरर’ पॉलिसी का यही कहना है। जबक्रोध आपको सताए, तब दर्पण में अपना चेहरा देख लो। आप डर जाओगे। ऐसे चेहरे का निर्माण क्या हमें शोभास्पद है कि जिसे देख कर हम स्वयं डर जाएँ? अपने ही हाथों बला क्यों मोल लें?
अथवा जब आपके तेवर चढ़ जाएं, तब एक फोटू खिंचवा लो। पश्चात् जब-जब गुस्सा आए तब-तब आप उस फोटू को देखते रहो। सचमुच गुस्सा चला जाएगा। क्रोध के प्रवेश से ही व्यक्ति मानो नर में से वानर और मानव में से दानव बन जाता है। गुस्से के समय आपके रंग-ढंग कितने विकृत हो जाते हैं? ऐसा बदसूरत चेहरा दूसरों को क्यों बताना ?
यदि बाह्यदृष्टि से आप इतना नीचे उतर जाते हैं तो प्रभु की दृष्टि में कितना नीचे उतर जाओगे? शांति के महासागर समान परमात्मा कहाँ और कहाँ हमारी क्रोध से विकृत अवस्था?
कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली। ऐसी विचारधारा अपनाने से क्रोध के समय अपनी आत्मा खटकेगी।
यदि क्रोध के समय ऐसी विचारधारा रखना मुश्किल हो तो शाति के समय में इस बात का चिंतन करो कि ‘परमात्मा मुझे प्रत्यक्ष देख रहे हैं। मेरे पास ही खड़े हैं।’ ऐसी संवेदना मजबूत बनेगी तो फिर क्रोध करने में कितना संकोच होगा? क्रोध अपनी पीठ फेर कर भाग जाएगा।
आपका तैशयुक्त चेहरा देख कर आप स्वयं ऊब जाओगे, तो दूसरों का क्या कहना?
खुद को ही अपनी जो वस्तु अप्रिय लगे, वह वस्तु दूसरों के लिए क्या धिक्कार और तिरस्कार के पात्र नहीं बनेगी?
क्रोधयुक्त तस्वीर को हँसती-खिलती करने के लिए स्वभाव बदल दो। मात्र तस्वीर ही नहीं, तकदीर भी बदल जाएगी। वह भी हँसती बन जाएगी। आसपास का पूरा विश्व हँसता हुआ, प्रसन्नचित्त बन जाएगा।’