दोनों को अहसास

आज अमन ऑफिस से ही आफत मोल लेकर घर पहुँचा। अपना बैग रखा ही था कि दोनों बच्चे झगड़ते हुए पापा के पैरों से लिपट गए और बड़ी मासूमियत से पूछा ‘पापा! जल्दी बताओ, आप किससे ज्यादा प्यार करते हैं?

अमन का मन ऑफिस में हुई बॉस से बहस के कारण डिस्टर्ब था। उसने बच्चों की बात का उत्तर न देकर झुंझलाते हुए पत्नी आरती को आवाज दी और कहा- कितना सर चढ़ा रखा है इनको। अभी घर में कदम नहीं रखा कि इससे पहले ये नादान लड़ते-झगड़ते मेरे सामने आ गए। आखिर तुम इन्हें समझाती क्यों नहीं?

आरती भी दोनों बच्चों की नोक-झोंक से पहले से तंग ही हो रखी थी। थोड़ी देर पहले ही तो दोनों का झगड़ा मिटाया था। वह भी घरेलू कामकाज की ज्यादती से उकताई हुई, ऊपर से पति का उलाहना सुन झुंझला उठी और सदा पति का सम्मान करने वाली आज बोल उठी- ‘आप भी तो इन्हें समझा सकते हैं? मुझे तो दिनभर घर के कार्यों से ही फुर्सत कहाँ मिलती है? देखते नहीं, मशीन की तरह हर काम में लगी रहती हूँ और यह दोनों होमवर्क करने के लिए मेरा रसोई का काम खत्म होने का इंतजार करते हैं।

ये दीप 12 वर्ष का और दीया दस वर्ष की होने को आई। पर इन्हें अपने मम्मी-पापा पर जरा भी दया नहीं आती। दोनों जरा भी नहीं सोचते कि हमें भी आराम की जरूरत है।

यह कहकर उसने पास में ही खड़े मासूम दीप और दीया के गाल पर कसकर तमाचे जड़ दिए। दोनों बच्चे सहमे सहमे कमरे में चले गए।
वातावरण की गम्भीरता को भांपते हुए अमन ने कहा- आरती। तुम्हें इस तरह बच्चों को मारना नहीं चाहिए था। हकीकत में गलती येश भी है, दोनों बच्चे पूछने ही तो आए थे कि ‘मैं किससे ज्यादा पार करता हूँ। बेमतलब ऑफिस का गुस्सा बच्चों पर निकाल रहा था।’

आरती ने भी भीगे स्वरों में कहा- ठीक कह रहे हैं आप। में भी आजकल घर के कामकाज की थकान की झुंझलाहट, बच्चों पर निकालने लगी हूँ।’

अमन और आरती दोनों को अहसास हुआ अपनी-अपनी गलती पर। उमड़ते प्यार के साथ दोनों बच्चों के कमरे में गए। मम्मी-पापा को एक साथ कमरे में आते हुए देख दोनों भाई-बहन सहम से गए। रोक नहीं पाया अपने आपको अमन बच्चों की ऐसी हालत को देखकर। उसने लपक कर दीया को उधर आरती ने भी दीप को गले से लगा लिया। पापा की प्यार भरी नजरों को समझ नन्हीं सी दीया और दीप एक साथ बोल पड़े ! ‘सॉरी! मम्मा-पापा! अब हम कभी भी झगड़ा नहीं करेंगे।’ प्यार से दीप दीया के सर पर हाथ फिराते हुए आरती बोली- ‘हम भी तुम्हें कभी नहीं मारेंगे।’

हँसते-मुस्कुराते चारों ही लूडो खेलने लगे। बच्चों की खिलखिलाहट फिर से घर में गूंजने लगी।

आज अमन और आरती को अहसास हुआ कि कितनी भी थकान और व्यस्तता क्यों न हो, कुछ समय ‘अपनों के बीच भी विताना जरूरी है।’

आखिर घर परिवार के लिए ही तो इंसान दिन भर दौड़ धूप करता है। घर का हर चेहरा हँसता नजर आना चाहिए। इसी में जिन्दगी की खूबसूरती बरकरार रह सकती है और हँसी-खुशी में जिन्दगी बसर हो सकती है।’

युगद्रष्टा आचार्य प्रवर श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा.

प्रस्तुति : साध्वीरत्ना अनुपम श्री जी म.सा.

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